Bhairav Amritwani

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शंखेश्वर को नमन करूं, पुजू गोड़ीजी पाय,

नाकोड़ा के दर्शन से, दुःख सकल मिट जाए ।

नाकोड़ा भैरव प्रभु, सुमंधा थारो नाम,

जीवन सफल बनावे जो, सिद्ध सकल हैं धाम ।

माया मोह में जीवड़ो फस्यो, आयो थारे द्वार,

दिजो सहारो नाथ जी, हे मुक्ति दातार ।

एक सहारो नाथ को, छोड़जो मत तुम साथ,

चरण पखेरू भैरवा, हे प्रभु दीनानाथ ।

भिक मांगु मैं हे प्रभु, दर्शन की थारा भिक,

द्वार खड्या थारा भैरव, दो भक्ति की सीख ।

नाकोड़ा भैरव कदर, सब संकट मिट जाए,

द्वार पे थारा जो चढ़े, कष्ट कभी नि सताए ।

नाकोड़ा भैरव थारो, जो ले घर मे नाम,

सुख संपत्ति पावे हैं वो, घर केवाए धाम ।

जो घर मे होवे नहीं, कोई कभी संतान,

भक्ति से भैरव प्रभु, होवे गर्भादान ।

रोगी जो भोगे सदा, दुःख की होवे निदान,

दर्शन से नाकोड़ा के, मिले उन्हें वरदान ।

पीड़ित जो असहाय हैं, द्वार थारा सुख पाए,

दुःखी जना को तू प्रभु, हर ले दुखड़ा आए ।

सुखकर्ता नाकोड़ा भैरव, जाने सकल जहां,

मानता से थारी प्रभु, होवे सकल सब काम ।

चरण शरण मे जो आवे, पाप दूर हो जाए,

दिव्य प्रभाव से भैरवा, कष्ट सभी भाग जाए ।

तू अकूत शक्ति का हैं, करुणा का भंडार,

लाख लाख हैं भक्त तेरे, देवे सब ने प्यार ।

छोटो बड़ो नि कोई हैं, सीध भैरव के द्वार,

धन निर्धन को भेद नि, नाकोड़ा दरबार ।

नाकोड़ा भैरव जी की, हो जो कृपा एक बार,

शुभ दृष्टि से थारी भी, निर्धन हो सावकार ।

नाम सुमर से भैरवा, दुःखी सुखी हो जाए,

शरण में थारी आए जो सकल मनोरथ पाए ।

नाकोड़ा भैरव के प्रति, जिसकी श्रद्धा पार,

बाल ना बांका हो कभी, नाम की महिमा धार ।

श्री नाकोड़ा तीर्थ की, महिमा का नहीं पार,

नतमस्तक होते सभी, सिद्ध सकल दरबार ।

श्री नाकोड़ा तीर्थ जो, आ जावे एक बार,

विपदा से मुक्ति मिले, भव से हो बेड़ा पार ।

वार्षिक मेला में प्रभु, जो थारा दर्शन पाए,

जो भी मांगे पाए वो, जनम सफल हो जाए ।

भोग लगावे जो तेरे, जब घर मे हो शुभ काम,

बहू धन धान्य भरे घर मे, नाकोड़ा महाराज ।

हैं निराश नर नारी जो, आशा लेके आए,

राह दिखावे भैरवा, मिट जावे सब पाप ।

धनहीन को धन मिले, कोढ़ी काया पाए,

श्री नाकोड़ा तीर्थ पे, निर्मल मन हो जाए ।

भक्तो पे करुणा करो, हे प्रभु दीनदयाल,

कृपा निधान आप हो, दीनो के किरपाल ।

राजा रंक सब एक है, दादा के दरबार,

छोटे बड़े का भेद नि, नाकोड़ा दरबार ।

भक्तो ने देखे कई, भैरव के चमत्कार,

महिमा बखाने क्या तेरी, हे जग के आधार ।

जात पात को भेद नि, हर कोई कृपा पाए,

भक्ति सांची से प्रभु, तुरंत प्रसन हो जाए ।

नाकोड़ा भैरव चरण, हो आनंद विभोर,

एक देव संसार मे, दुजो नि कोई और ।

सुख समृद्धि देत हो, भक्तो को महाराज,

महिमा जाने जहां है, मन भक्तो के राज ।

तेरी उज्वल ज्योत से, मन उजियारा होए,

श्री नाकोड़ा भैरव सा दुजा ना कोई ।

हर व्यापार ऊंचा उठे, देते कमाई खुब,

सेवा से भैरव तेरी, अन्न धन हो अकूत ।

श्री नाकोड़ा तीर्थ की भूमि कितनी पवित्र,

दर्शन से भैरव तेरा, मनवा लागे विचित्र ।

विपदाओं से घिरा नर जो, आवे तेरे द्वार,

श्री नाकोड़ा भैरवा, देते सबको प्यार ।

धरती तीरथ धाम है, जो दर्शन को पाए,

उस धरती पर भक्तो ने, दुःखडे दिए भुलाए ।

श्री नाकोड़ा भैरव का अजब है चमत्कार,

आकर्षित करता सदा, तेरे मुखड़े का प्यार ।

दर्शन करके आपके, जीवन धन्य हो जाए,

भाग्यहीन आवे जो दर, सौभागी हो जाए ।

दुःख दर्दी जो भी भैरव, तेरी शरण मे आए,

कष्टो से मुक्ति मिले, जो तेरी शरण समाए ।

नौ ग्रह की पीड़ा सभी, नाम श्रवण मिट जाए,

पाप और संतापों से भी, तुरंत मुक्ति मिल जाए ।

तुझे भुला ना पाए हम, हे प्राणों का नाथ,

जनम जनम मिलता रहे, भैरव तेरा साथ ।

भक्त तेरा सदा बना रहूं, आशा ऐसी देव,

और अधिक मोहे सुखी करो, हे देवो के देव ।

शरण गहे शंका कभी, हो सकती लवलेश,

मुरत के दर्शन से ही, होता प्रेम विशेष ।

हर सुबह उज्वल बने, बने सुहानी शाम,

नाकोड़ा भैरव तेरी, कृपा जाने जहां ।

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